मै उसके क़दमों की आहट सुनता हूँ , मेरी धड़कन पूर्वानुमान के चलते तेज हो जाती है. मै उसकी आवाज़ को महासागर के समान सुनता हूँ. यह मेरी आत्मा के लिए मनोहर मरहम के समान है. मेरा परमप्रिय बुला रहा है; क्या यह मै ही हो सकता हूँ जिसके लिए वो बुला रहा है ? ऐसी कीमती आशा मेरी छाती में कैसे विकसित हो सकती है ? कहाँ से यह विचार उठा है? मुझे क्यूँ इस शक्तिशाली राजकुमार, पिता के परमप्रिय पुत्र के ध्यान के योग्य गिना जाना चाहिए?
पवित्र स्थान की प्रितध्वनियाँ , श्रेस्ठगीत और तीर्थयात्री की प्रगति के साथ , वाधा, विपत्ति और चुनौती के माधयम से खोजने, सब कुछ हवाले करने और पिता के पुत्र येशु के प्रेम में पड़ने के लिए एक व्यक्ति की यात्रा का पता चलता है .